Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मेला
बिहारी व्यंजन खाना Litti Chokha (लिट्टी चोखा) की शुरुआत कब और कैसे हुई | Litti Chokha (लिट्टी चोखा) मेला का संबंध रामायण काल से | विश्व प्रसिद्ध पंचकोसी परिक्रमा मेला को Litti Chokha (लिट्टी चोखा) के साथ जोड़कर क्यों देखा जाता है | पांच दिवसीय, पंचकोसी परिक्रमा के अंतिम दिन Litti Chokha (लिट्टी चोखा) मेला में Litti Chokha (लिट्टी चोखा) बनाने और खाने के लिए क्यों जुटते हैं लाखों लोग | Litti Chokha (लिट्टी चोखा) मेला में लाजवाब व्यंजन Litti Chokha (लिट्टी चोखा) प्रसाद के रूप में ग्रहण करने की परंपरा की कहानी | पारंपरिक बिहारी डीश Litti Chokha (लिट्टी चोखा) का यह अनोखा मेला हमारे समाज को क्या संदेश देती है |
1. Litti Chokha ( लिट्टी चोखा )
नमस्कार मित्रो ।
हमारी संस्कृति विषय पर आज मै आपको बिहार के लज़ीज़ व्यंजन लिट्टी चोखा की विस्तृत जानकारी साझा करने वाला हूं।
मुझे पूरा विश्वास है कि आप में से अधिकांश लोगों ने भोजपुरी Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) अवश्य खाया होगा | यह Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) एक विशेष बिहारी व्यंजन खाना है | अगर आप एक बार इस लाजवाब व्यंजन Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) को खा चुके हो या फिर इसके बारे में अपने किसी बिहारी साथियों से सुनी हो तो इस स्वादिष्ट भोजन Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) को खाने के लिए हमारा मन एकदम से ललच सा जाता है | ऐसा लगता है कि कब यह पारंपरिक बिहारी डिश Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) हमारे डाइनिंग प्लेट में हो और हम उस पर खाने के लिए एकदम से टूट पड़े |
विशेष नोट :
सतू की लिट्टी कैसे बनाए,लिट्टी मुख्य सामग्री,चोखा बनाने की विधि या भोजपुरी Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) बनाने की प्रक्रिया के लिए आप यह वीडियो देख सकते है |
Credit : - NishaMadhulika - YouTube
अगर बनी हुई लिट्टी देसी गाय के शुद्ध घी से लबालब हो और इसके साथ जले हुए बैगन, टमाटर, प्याज, धनिया पत्र और हरी मिर्च का चटकदार चोखा हो तो Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) के लिए मुंह में लार का टपकना स्वभाविक सा हो जाता है |
बिहारियों व भोजपुरिया समाज का Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) एक पारंपरिक और प्रिय व्यंजन सेहत और स्वाद से भरा यह व्यंजन Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) बिहार ही नहीं देश के बाकी राज्यों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी परचम लहरा चुका है |
हर दिल अजीज इस टेस्टी व्यंजन Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) को अगर एक बड़े स्वरूप पर मेले का रूप दे दिया जाए और इस मेले में अगर आपको भरपूर Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) खाने की आरजू पूरी हो जाए वह भी बिल्कुल मुफ्त तो मजा आएगा ना !!!
जी हां, हर दिल अजीज व्यंजन Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) का एक अद्भुत विशाल महा-मेला Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मेला महोत्सव के रूप में हर वर्ष बिहार के बक्सर जिले में मनाया जाता है | अगहन मास के प्रारंभ पंचमी तिथि को Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) का या भव्य मेला पूरे श्रद्धा जोश और उमंग के साथ संपन्न किया जाता है | आपको सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा पर यह सच है |
आइए हम इस Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) के महोत्सव को विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं ताकि वर्ष में जब भी आपको इस मेले के लिए समय मिले, आप अपने कीमती समय से इस Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) के अनूठे मेले के लिए समय निकाल पाए और Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) खा कर अपने आप को हर दृष्टि से संतोषप्रद कर पाए |
2. पंचकोसी परिक्रमा मेला
बच्चे, बुजुर्ग या हो युवा.. हम सभी मेले को बहुत पसंद करते हैं सही कहा ना मैंने क्योंकि यह मीठा शब्द मेला हमारे अंदर एक अजीब सी खुशी, उमंग और ऊर्जा को भर देता है | हम सभी अपने अपने मर्जी के हिसाब से मेले में अपनी खुशी अक्सर ढूंढते हैं | मेले के आयोजन का अगर पता चले तो हमारी प्लानिंग उस दिन से ही प्रारंभ हो जाती है |
मेले के आयोजन का पता जैसे ही हमारे कानों तक पहुंचती है हम मेले में घूमने को लेकर प्लानिंग करना आरंभ कर देते हैं और यह हम सभी के साथ अमूमन होता है | पूरी दुनिया की अगर हम बात करें तो अपना भारत मेले के मामले में सबसे पहले आता है और शायद इसी वजह से यह दुनिया वाले अपने देश भारत को मेलों का देश भी कहते रहे हैं | यहां साल के हर दूसरे या तीसरे महीने में मेले का आयोजन किया जाता रहा है | यहां मेला, शहर हो या गांव हम सभी इसे देखने और मौज मस्ती के वजह से इसका लाभ उठाने से पीछे नहीं चूकते |
मेला का आयोजन हमेशा से एक विशेष कारणों से किया जाता है | वह कारण सांस्कृतिक भी हो सकता है या सामाजिक या फिर व्यापारिक | जैसे धर्म,मजहब के अनुसार, हिंदू देवी देवताओं पर आधारित कुंभ का मेला, पुष्कर का मेला, सावन और दशहरा जैसे मेला इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं | वहीं दूसरी ओर सोनपुर का पशु मेला, विज्ञान पर आधारित विज्ञान मेला, पुस्तक प्रेमियों के लिए पुस्तक मेला, किसान भाइयों के हित में लगने वाला कृषि मेला तथा इसके अलावा भी कई तरह के मेलों का आयोजन होता रहता है |
सौजन्य : चित्र ताड़का वध | Fatafat Creation YouTube |
मान्यता और पौराणिक कथा अनुसार Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मेले का आयोजन के पीछे की रहस्य त्रेतायुग रामायण काल से जुड़ी है | प्रभु राम ने अपने अनुज भैया लक्ष्मण के साथ बक्सर के चरित्रवन में Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) अपने हाथों से बनाया था और इसके पश्चात इस Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) को प्रसाद के रूप में अपने गुरु महर्षि विश्वामित्र और उनके आश्रम के ऋषि-मुनियों के साथ जमीन पर बैठकर एक साथ खाकर की थी |
कहा जाता है- राम जी ने इस मनमोहक व्यंजन Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) का सेवन अपने पंचकोशी यात्रा के अंतिम चरण में की थी |
अब यहां आप अवश्य सोच रहे होंगे कि,
- श्री राम जी की पंचकोशी यात्रा...इसका इतिहास क्या होगा |
- आखिर प्रभु ने ये 5 कोस की यात्रा क्यों की थी |
- अगर बक्सर जिले का चरित्र वन इनका अंतिम चरण था तो इस यात्रा की पहली पड़ाव कौन सी थी |
- क्या पहली और अंतिम पड़ाव के बीच कुछ और भी पड़ाव था |
यह कई सारे प्रश्न अवश्य ही आपके मन में घर कर गए होंगे | चिंता ना करें,मैं आपको प्रभु के सारे पड़ाव की कथा और इसके सांस्कृतिक महत्व के बारे में शास्त्रों के अनुरूप आप तक रखने की मेरी पूरी प्रयास रहेगी |
श्री रामचंद्र जी ने उन दौरान पांच पड़ाव की यात्रा की थी जिसे पंचकोशी परिक्रमा भी कहते हैं | हर पड़ाव की दूरी एक दूसरे से लगभग 1 कोस की थी और सारे पड़ाव मात्र एक एक दिन की थी | प्रत्येक पड़ाव का संबंध ऋषि आश्रम से था | सारे पड़ाव के पीछे कुछ रोचक कहानियां भी जुड़ी हुई है | मैं उसे भी आप तक रखने का प्रयास कर रहा हूं ताकि आप सभी को पंचकोशी परिक्रमा मेले उर्फ Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मेले के बारे में और अधिक जानकारी मिल सके |
कथा के अनुसार महर्षि विश्वामित्र का आश्रम चरित्रवन में हुआ करता था | इस सिद्धाश्रम के चारों ओर लगभग 80000 ऋषि आश्रम हुआ करते थे | वर्तमान में यह आश्रम सिद्धाश्रम, बिहार राज्य के बक्सर जिला में पड़ता है | इसकी दूरी बिहार राज्य की राजधानी पटना से लगभग 150 किलोमीटर है |
पतित पावनी गंगा मैया तट पर बसा यह आश्रम उन दिनों राक्षसों के अत्याचारसे त्राहि-त्राहि कर रहा था | आए दिन यज्ञ के दौरान ऋषि-मुनियों को प्रताड़ित और परेशान दैत्यों द्वारा किया जाता था | बलि के रूप में भोल भाले ऋषियों की निर्मम हत्या एक आमविषय थी | राक्षस इसके लिए निरीह साधुओं को उनके आश्रम से अक्सर जबरन उठा ले जाते थे | दुष्ट-दुराचारी राक्षसों और आसुरी शक्तियों से छुटकारा पाने हेतु महर्षि विश्वामित्र अयोध्या गए | वहां जाकर राजा दशरथ से मिले और आसुरी शक्तियों के विनाश हेतु प्रभु श्री राम और लक्ष्मण को अपने साथ ले आए |
कथा अनुसार यज्ञ के दौरान अड़चन और विघ्न पैदा करने वाले राक्षसों का वध प्रभु श्री राम ने अपने अमोख वाण के माध्यम से किया और वहां के ऋषि आश्रमों को दुष्टों से छुटकारा दिलाया | जिसमें विशालकाय राक्षसी ताड़का सुर और मारीच, सुबाहु का नाम सम्मिलित है | आसुरी शक्तियों के समापन फल स्वरूप ऋषि-मुनियों ने प्रभु श्री रामचंद्र जी का आभार प्रकट करने के लिए उन्हें आतिथ्य के रूप में अपने अपने आश्रम में आमंत्रित किया |
कहते हैं यह बुलावा संदेश पांच अलग-अलग आश्रमों के द्वारा था जो कि एक दूसरे से एक एक कोश की दूरी पर स्थित थे | प्रभु राम ने आभार आमंत्रण को ग्रहण करने हेतु इन 5 कोस की पदयात्रा की थी और वहां के ऋषि मुनियों द्वारा दी गई भोजन को प्रसाद के रुप में स्वीकार कर क्रमशः एक एक रात वहां गुजारी थी |
इस पंचकोसी परिक्रमा में प्रभु को ऋषि मुनियों द्वारा उनके आश्रम में प्रसाद के रूप में भोजन क्रमशः जलेबी पुआ, खिचड़ी चोखा, दही चूड़ा, सत्तू मूली और लजीज लिट्टी चोखा करवाया था | मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र की यह 5 कोस की पंचकोशी यात्रा ही पंचकोशी परिक्रमा है जो वैदिक काल से चीर निरंतर चली आ रही है |
आइए पंचकोसी परिक्रमा को भी हम विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं और एक-एक कर हम सभी पड़ाव के बारे में बारी-बारी से जानते हैं | सारे पड़ाव के पीछे कुछ रोचक कहानियां भी जुड़ी हुई है | मैं उसे भी आप तक रखने का प्रयास कर रहा हूं ताकि आप सभी को पंचकोशी परिक्रमा मेले उर्फ Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मेले के बारे में अधिक से अधिक जानकारी मिल सके |
3. अहिरौली गांव, प्रथम पड़ाव
सारे पड़ाव के पीछे कुछ रोचक कहानियां भी जुड़ी हुई है | मैं उसे भी आप तक रखने का प्रयास कर रहा हूं ताकि आप सभी को पंचकोशी परिक्रमा मेले उर्फ Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मेले के बारे में अधिक से अधिक जानकारी मिल सके |
जब प्रभु राम और लक्ष्मण अपने गुरु महर्षि विश्वामित्र के साथ पंचकोशी परिक्रमा की पहली पड़ाव अहीरौली कि रास्ते में एक वीरान कुटिया को देखा और रुक कर विश्वामित्र से इस विराने पन के बारे में पूछा | उत्तर में विश्वामित्र ने इसकी पूरी कहानी सुनाना प्रारंभ की |
यह कथा ब्रह्मदेव की मानस पुत्री अहिल्या से जुड़ी हुई थी | अहिल्या जन्म से ही बेहद खूबसूरत थी | इनकी खूबसूरती की चर्चा पूरे ब्रह्मांड में थी यहां तक की स्वर्ग लोग की अप्सराएं भी इनकी सुंदरता के आगे अपने आप को ठगा हुआ महसूस करती थी | खूबसूरती के साथ-साथ अहिल्या को चिरस्थाई यौवन अवस्था का वर प्राप्त था |इसी वजह से देव, दानव, गंधर्व सभी इनसे विवाह करने के लिए आतुर रहा करते थे जिसमें देवराज इंद्र का नाम सबसे आगे था |
ब्रह्मदेव ने अपनी मानस पुत्री का विवाह संपन्न करवाने के उद्देश्य से सभी के समक्ष परीक्षा की एक शर्त रखी और घोषणा करवाएं कि जो भी इस परीक्षा में सफल होगा, वे अपनी पुत्री का शुभ विवाह उनसे करवा देंगे |
इसी प्रकरण में ब्रह्मदेव ने परीक्षा स्वरूप अपनी पुत्री आहिल्या को अपने साथ महर्षि गौतम के आश्रम लेकर पहुंचे और ऋषि से कहते है ,हे मुनिवर मै कुछ विशेष कार्यवश अपनी पुत्री को आपके आश्रम छोड़कर जा रहा हूं और कार्य समाप्त होने पर वापस आकर अपनी पुत्री को अपने साथ ले जाऊंगा पर इन दौरान आप मेरी पुत्री का ध्यान रखें | इतना कहकर ब्रह्म देव वहां से चले गए |
ब्रह्म देव की मानस पुत्री जो पूरे सृष्टि में सबसे खूबसूरतऔर आकर्षक थी, जिसे देखकर अच्छे अच्छों की नीयत डोल जाती थी | पर गौतम ऋषि ने एकपल के लिए भी इन्हें आंख उठाकर तक नहीं देखी और अपने धर्म का पालन बखूबी निभाई |
इस पूरी प्रक्रिया को परीक्षा के तहत् ब्रह्मदेव ध्यान से देख रहे थे | संत के इस संयम स्वभाव और साधुवाद को देखकर वे बेहद प्रभावित और प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह गौतम ऋषि से कर दी |
वही दूसरी ओर, देवराज इंद्र यह सब कुछ अपनी आंखों से देख मन ही मन द्वेष और जलन की भावना गौतम ऋषि के प्रति उनके अंदर घर करने लगी थी | कामवासना, जलन और बदले की भावना से चंद्रदेव के साथ मिलकर एक कुकृत्य करने का निश्चय किया | इसके लिए इंद्र ने गौतम ऋषि के पूरे दिनचर्या का अध्ययन की और अध्ययन में एक समय निकाली जहां ऋषि, देवी अहिल्या से कुछ समय के लिए दूर हो |
देवराज के अध्ययन में गौतम ऋषि के पूरे दिन का ब्रह्ममुहूर्त ही एक ऐसा समय था जब देवी अहिल्या से वे नित्य दिन कुछ घंटो के लिए दूर रहा करते थे | इसी क्षण का लाभ लेने हेतु,इंद्र ने चंद्रदेव के साथ मिलकर षड्यंत्र रची | इस कपट षड्यंत्र के अनुसार देवराज और चंद्रदेव गौतम ऋषि के आश्रम आधी रात पहुंचे | इंद्र ने चंद्रदेव को मुर्गे की आवाज में बाग देने के लिए निर्देश दिया और साथ में यह भी कहा कि जब ऋषि आश्रम छोड़कर स्नान के लिए गंगा तट निकलेंगे तो आपको पहरेदारी के रूप में कुटिया के द्वार पर खड़े रहना होगा और कुछ भी अंदेशा होने पर मुझे फौरन सूचित करना होगा |
षड्यंत्र के अनुसार चंद्र ने बाग दी | मुर्गे की बाग की आवाज सुनकर ऋषि गौतम ने गंगा स्नान हेतु हर दिन की तरह, देवी अहिल्या से अपने वस्त्र लेकर मैया गंगा की तट की ओर निकल पड़े | वहीं दूसरी ओर इसका लाभ उठाकर देवराज इंद्र नेअपनी माया से गौतम ऋषि का वेश धारण कर कामवासना से कुटिया में प्रवेश कर देवी के अस्मिता को तार तार करने के उद्देश्य में जुट गए | चंद्र देव षड्यंत्र के अनुसार, द्वार पर पहरेदारी करने लगे |
दूसरी तरफ ऋषि गौतम गंगा तट पहुंचकर जैसे ही स्नान के लिए आगे बढ़े, उन्हें कुछ अनहोनी होने की आभाष हुई | महर्षि के इस शंका को मां गंगा ने साक्षात दर्शन देकर देवराज इंद्र की कुकृत्य कथा पूरी सुना डाली | मां गंगा की बात सुनकर तुरंत ही क्रोध में अपने कुटिया की ओर दौड़ पड़े |
अपनी कुटिया के द्वार पर चंद्र को खड़ा देख महर्षि नेपूरे क्रोध में अपनी कमंडल दे मारी और चंद्र से कहा हे अधर्मी, तुमने अधर्म में भागीदारी निभाई है | इसलिए मैं तुम्हें शापित करता हूं कि तेरी चमक मे यह दाग हमेशा हमेशा लगा रहेगा और यह दाग तुम्हे हमेशा तुम्हारे कूकृत्य की याद दिलाता रहेगा | आज भी चंदामामा में दाग हम सभी देख सकते है जिसे कथा अनुसार मान्यता प्राप्त है।
शोरगुल सुनते ही देवराज इंद्र अपने मूल स्वरूप में आकर बाहर की ओर भागने लगे | क्रोध में महर्षि ने देवराज इंद्र से कहा , भागते कहां हो कपटी और दुष्ट इन्द्र, रुक जा वरना मैं तुम्हें भस्म कर दूंगा | उन्होंने देवराज इंद्र को श्राप देते हुए कहा, आज के बाद तू सदैव नपुंसक रहेगा और तुम्हें कभी भी सम्मान, किसी से भी नहीं मिलेगी और ना ही तुम्हारी कभी पूजा की जाएगी |
कहते हैं ना क्रोध के आगे कभी कभी निर्दोष भी परवान चढ़ जाता है | देवी के साथ भी यही हुआ | चुकी देवी अहिल्या पूर्ण रूप से निर्दोष और,षड्यंत्र से बिल्कुल अपरिचित होते हुए भी देवी क्रोध बस शापित हुई और एक शीला में परिवर्तित हो गई |
क्रोध शांत होने के पश्चात् महर्षि गौतम को अपनी अर्द्धांगिनी के प्रति अपने द्वारा हुए कृत्य पर बेहद पछतावा हुई | उन्होंने उसी क्षण देवी आहिल्या के मुक्ति हेतु यह ब्रह्म वाक्य दिया कि जब भी कोई महान आत्मा इस कुटिया तक आएगी और उनके दिव्य चरण तुम्हारे शीला से स्पर्श होंगे, तुम अभिशाप से पूर्ण मुक्त हो जाएंगी और इतना कहकर वह उस कुटिया से हिमालय की ओर प्रस्थान कर गए |
इस तरह महर्षि विश्वामित्र ने भगवान राम और लक्ष्मण को देवी अहिल्या की शीला बनने की पूरी कहानी सुनाई और कहां की श्री राम, वह महान आत्मा आप ही हैं और आपके चरण स्पर्श मात्र से ही देवी अहिल्या पुनः अपने स्वरूप में शाप मुक्त होकर लौट आएंगी | अपने गुरु विश्वामित्र की आज्ञा अनुसार श्री रामचंद्र अपने चरण स्पर्श से देवी अहिल्या को श्राप मुक्त किया ।
सारे पड़ाव के पीछे कुछ रोचक कहानियां भी जुड़ी हुई है | मैं उसे भी आप तक रखने का प्रयास कर रहा हूं ताकि आप सभी को पंचकोशी परिक्रमा मेले उर्फ Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मेले के बारे में अधिक से अधिक जानकारी मिल सके |
यहां के आश्रम में प्रभु श्री राम ने अपने अनुज और महर्षि विश्वामित्र के साथ प्रसाद के रूप में जलेबी खाकर एक रात बिताई थी |
4. द्वितीय पड़ाव देवर्षि नारद जी का आश्रम, नदांव
द्वितीय पड़ाव देवर्षि नारद जी का आश्रम जो आज नदांव के नाम से जाना जाता है जहां रामजी ने खिचड़ी चोखा का सेवन किया था | इस आश्रम से भी जुड़ी एक बेहद रोचक कथा है | आइए हम संक्षिप्त में जानते है |
जैसा कि हम सभी जानते हैं, नारद जी श्रीनारायण के परम भक्त थे |अपनी भक्ति के शक्ति को और अधिक बढ़ाने के उद्देश्य से एक बार देवर्षि नारद कठोर तपस्या कर रहे थे | उनके तपोबल से पूरा ब्रह्मांड में एक हलचल सी होने लगी | इसे देख देवराज इंद्र को अपने सिंहासन डोलने का भय सताने लगा | उन्होंने कामदेव को अपने अप्सराओं के साथ मिलकर देवर्षि नारदजी के जप और तप को भंग करवाने का निर्देश दिया | भरपूर प्रयास साम,दाम, दण्ड, भेद के बाबजूद भी नारद मुनि के तपस्या को भंग करने में विफल रहे | अंत में हारकर देवराज इंद्र ने नारदजी से क्षमा याचना करते हुए कहा, देवर्षि आप तो काम और क्रोध दोनों को वश में कर चुके हैं | सचमुच आप धन्य हैं और धन्य है आपकी प्रभु भक्ति |
इतना सुनकर नारद जी बहुत प्रसन्न हुए और यह तीनों लोको में चर्चा का विषय बन गया | यह गुणगान नारद जी के हृदय में आहिस्ता आहिस्ता अहंकार का रूप लेना प्रारंभ किया | अपने प्रिय भक्त नारद के इस स्वरूप को देखकर, प्रभु नारायण ने उनके अभिमान को तोड़ने और एक अच्छी सबक हेतु माया की रचना की | माया अनुसार उन्होंने एक सुंदर और भव्य राज्य की स्थापना की | इस नगर की खासियत यह थी कि यहां का हर एक शख्स बेहद सुंदर और खूबसूरत नाक नक्शे का था | इस राज्य का नाम शीलनगर रखा जिसके राजा शीलनिधि थे | विश्वामोहिनी इनकी पुत्री थी | यह देखने में बेहद सुंदर और खूबसूरत थी | इसकी सुंदरता का तोड़ पूरे विश्व में किसी के पास नहीं था |
देवराज इंद्र की बातों को मन ही मन दोहराते हुए नारद जी आकाश मार्ग से अपने प्रभु श्रीहरि का निवास स्थल,वैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान कर रहे थे | यात्रा के दौरान श्री नारायण के माया द्वारा निर्मित व सुंदर नगरी नारद जी को अचानक दिखाई पड़ी | उस दिव्य और सुंदर नगरी और नगर में वास करने वाले लोगों की सुंदरता को देखकर नारदजी से रहा नहीं गया और वे उस राज्य की ओर चल पड़े | शीलनगर पहुंचकर नारद जी ने राजन से भेंट की | राजन ने बड़े सम्मान और आवभगत के साथ देवर्षि नारद का भव्य स्वागत किया और अपने दिल की बात नारदजी से साझा करी | उन्होंने विनम्रता से कहा, हे देवर्षि मेरी एक सूपुत्री है और मैं उसका विवाह एक उचित सर्वगुण संपन्न वर से करवाना चाहता हूं | मेरी पुत्री का एक गुण है कि जो भी इससे विवाह करेगा, वह सदा के लिए अमर हो जाएगा और नाग, नर ,किन्नर इनकी सदैव सेवा करेंगे |
ये सब सुनकर नारद जी को राजकुमारी विश्वामोहिनी से ब्याह करने की तीव्र इच्छा मन में जागृत हुई और देवर्षि नारद ने राजन को आश्वस्त करते हुए कहा कि आप चिंता ना करें आपकी सुपुत्री हेतु अवश्य ही एक सुंदर वर मिलेगा जो आप और आपकी पुत्री के अनुरूप होगा | इतना कहकर वे शीलनगर से सीधे अपने प्रभु की धाम की ओर प्रस्थान कर गए |
पूरे रास्ते नारद जी को मन ही मन विवाह करने की तीव्र इच्छा लिए वैकुंठ धाम से पहले अपनी मन की बात प्रभु शिव और ब्रह्मा जी के समक्ष रखी, पर उन दोनों ने सिरे से नकार दिया पर बिना मायुश हुए सीधे अपने प्रभु भगवान विष्णु के धाम वैकुंठ पहुंचे | चुकी यह भगवान विष्णु की ही रचाई हुई माया थी | रची हुई माया से अनिभिज्ञ देवर्षि नारद ने अपनी इच्छा अपने प्रभु के समक्ष रखी | नारद ने कहा, हे प्रभु मैं शीलनगर की राजकुमारी विश्वमोहिनी से विवाह करना चाहता हूं इसलिए आप मेरा कल्याण करें | आप मेरे रूप को ऐसा बना दे कि मुझे जो कोई भी देखें तो वह देखता ही रह जाए | नारायण ने मुस्कुराते हुए तथास्तु कहा |
नारद जी प्रसन्न होकर अपने प्रभु का आशीष लेकर वहां से सीधे शील नगर की ओर निकल पड़े जहां राजकुमारी विश्वमोहिनी का सुनियोजित स्वयंवर रखा गया था | स्वयंवर में पूरे ब्रह्मांड से सुंदर और सजीले राजकुमार और नवयुवक अपनी-अपनी किस्मत चमकाने के उद्देश्य से पहुंच रहे थे | देवर्षि नारद जी भी श्रीहरि द्वारा दिए रूप को लेकर वहां पहुंचे | उनके उस रूप को देखकर वहां उपस्थित सभा में सभी लोग जोर जोर से हंसने लगे | सभा में उपस्थित सदस्यों की हंसी देखकर नारद जी को लगा की शायद सभी प्रतिभागी मेरे सुंदर रूप को देखकर मेरी प्रशंसा में हंस रहे हैं | पर वास्तव में ऐसा बिल्कुल भी नहीं था | प्रभु ने नारद जी के अहंकार को तोड़ने हेतु उनका स्वरूप एक वानरराज के रूप में कर रखा था |
स्वयंवर प्रारंभ हुआ और विश्व मोहिनी ने भरी सभा में अपनी वरमाला अपने प्रभु नारायण को डाल कर उन्हें अपने स्वामी के रूप में स्वीकार किया | यह देखकर नारद जी को बहुत क्रोध आया और इसी बीच शीलनगर के प्रांगण में उपस्थित जल सरोवर में उन्होंने अपना मुख देखा | देखने के पश्चात क्रोधवश उन्होंने वही नारायण को श्राप दी और कहा हे नारायण, आप मानव योनि में जन्म लेंगे और अपनी प्रियतमा जीवनसंगिनी के वियोग को झेलगे और मुझे जो रूप देकर आपने मेरी जो जग हंसाई करवाई है उसी रूप को रखने वाले लोगों से सहयोग और सहायता की आप भीख मांगेंगे | इतना कहकर भरी सभा से अन्तर्ध्यान हो गए |
पर कहते हैं ना क्रोध में इंसान अपने आप में नहीं होता | इसी मंथन में वह मन ही मन सोचने लगे कि प्रभु ने ऐसा क्यों किया | अपने प्रश्नों के उत्तर हेतु पुनः सीधे वैकुंठधाम की ओर प्रस्थान किए जहां पहले से माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु उनका इंतजार कर रहे थे | पहुंचते ही नारद ने पूछा, प्रभु आपने मेरे साथ ऐसा छल क्यों किया | जब आपको खुद ही विश्वमोहिनी से विवाह करनी थी तो मुझे स्वयंवर के लिए क्यूं प्रेरित किया। आप मुझे आरंभ में ही मना सकते थे | दूसरी बात आपने मुझे यह रूप देखकर मेरी जग हसाई क्यों की ??
उत्तर में प्रभु ने कहा, आपके अपने घोषणा के अनुसार आपने कहा था कि आपने काम और क्रोध दोनों को अपने वश में कर लिया है जो कि अस्त्य साबित हुआ | आपके अहंकार को तोड़ने और जग के कल्याण हेतु ही मैंने यह सारी माया रची थी | वास्तव में विश्व मोहिनी पूर्व जन्म में वेदवती थी जो मेरी परम भक्त थी और वह मुझे पाना चाहती थी पर दुष्ट रावण की दुष्टता के कारण उसके जीवन का अंत हुआ था | उसकी इच्छा पूर्ति हेतु ही इस जन्म में उसका उद्धार हुआ |
अपनी गलती का पछतावा करते हुए देवर्षि नारद, भगवान शिव की कठिन तपस्या किए और अपने गलती से मुक्त हुए थे | संत मुनियों के अनुसार तपस्या का वह स्थल नार्देश्वर आश्रम नाम से परिभाषित हुआ | महर्षि विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नारद जी के आश्रम भेजे थे जहां नारद जी ने उन्हें खिचड़ी चोखा खिला कर आवभगत की थी | उस विधिवत परंपरा का निर्वहन आदिकाल से आज भी होते आ रही हैं |
5. भभुअर, तीसरा पड़ाव भार्गव मुनि का आश्रम | चौथा पड़ाव नुआव, उद्दोलक ऋषि का आश्रम
प्रभु का तीसरा पड़ाव भार्गव मुनि का आश्रम था जहां उन्होंने चूड़ा दही प्रसाद के रूप में ग्रहण की थी |
चौथा पड़ाव नुआव जो उद्दोलक ऋषि का आश्रम था | कथा अनुसार यहां हनुमान जी और उनकी मैया अंजनी जी रहा करते थे | प्रभु ने यहां सत्तू मूली का उपयोग भोग के रूप की थी |
प्रभु की अंतिम पड़ाव चरित्रवन था जहां पांचवे दिन ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) खाकर इस पूरे पंचकोसी परिक्रमा का समापन प्रभु श्री रामचंद्र ने अपने भाई भैया लक्ष्मण के साथ की थी |
6. Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मेला : विधिवत् प्रक्रिया एवं समाज में भाईचारा और आपसी मजबूती का संदेश
बक्सर जिले के लोग इसी परंपरा और अपनी सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए इस पंचकोसी परिक्रमा के अंतिम पांचवे दिन बक्सर जिला के चरित्रवन में आयोजित की जाने वाली Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मेले में भाग लेकर अपने आप को भाग्यशाली समझते हैं |
पंचकोसी परिक्रमा के निर्वाहन हेतु पंचकोसी परिक्रमा समिति का गठन किया गया है | इस समिति के देखरेख में पूरी पंचकोसी परिक्रमा का समापन होता है | पंचकोसी परिक्रमा, विधिवत गंगा तट पर स्थित रामरेखा घाट पर स्नान करने के पश्चात गंगा आरती द्वारा की जाती है |
साधु संतों,भक्तजनों का जत्था प्रभु श्री राम का जयकारा लगाते हुए भजन कीर्तन के साथ अपने पहले पड़ाव अहिरौली गांव की ओर कूच करते हैं | वहां पहुंचकर विधिवत स्नान के पश्चात देवी अहिल्या की मंदिर में आराधना की जाती हैं | इसके पश्चात पुआ पकवान बनाकर खाते हैं और एक रात वहां गुजारते हैं |
अगली सुबह पुनः एक कोष की दूरी पर स्थित नारदजी का आश्रम नदाव, भक्त मंडली पहुंचती है | वहां स्थित नार्देश्वर महादेव जी के मंदिर में पूजन अर्चन करने से पहले वहां स्थित नारद सरोवर में विधिवत स्नान किया जाता है | इस के पश्चात प्रसाद के रूप में क्रमशः खिचड़ी और चोखा का लाभ उठाया जाता है और पुनः एक रात यहां गुजारने की परंपरा है | रात गुजारने के बाद पुनः अगली सुबह एक कोस दूरी पर स्थित भभुअर जहां पहले ऋषि भार्गव जी का भार्गव आश्रम हुआ करता था | भगवान श्री राम द्वारा निर्मित तालाब में स्नान करके महादेव मंदिर में शिव जी का पूजा करने के फलस्वरुप दही चूड़ा प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं और एक रात फिर से विधिवत सारे भक्तगण बिताते हैं |
पुनः अगली सुबह अगली यात्रा नुआंव की ओर होती है जो उद्दालक मुनि के आश्रम को इंगित करता है | यहां साधु संतों के साथ श्रद्धालुओं की टोली विधिवत स्नान और पूजन के पश्चात सतुआ मूली का सेवन प्रसाद के रूप में लेते हैं और फिर से एक रात प्रभु की याद में बिताते हैं |
पंचकोसी परिक्रमा मेले की पांचवी और अंतिम पड़ाव गुरु विश्वामित्र की आश्रम चरित्रवन में समापन Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) बनाकर उसे प्रसाद के रूप में सेवन कर की जाती है | इस दिन बक्सर जिला के साथ उत्तर प्रदेश, झारखंड प्रदेश के लोग भी वैदिक परंपरा के इस पावन लिट्टी चोखे मेले का लाभ लेने हेतु लाखों की मात्रा में यहां आते हैं | प्रभु श्री राम के प्रति इनकी अटूट आस्था और प्रेम को आप साक्षात इस मेले में देख सकते हैं |
इस दिन हर वर्ग के लोग, यहां अपने अपने अनुसार पहुंचते हैं | क्या अमीर क्या गरीब सभी इस पावन स्थली चरित्रवन में आकर अपने आप को भाग्यशाली समझते हैं | इस मेले में अधिकांश आप बुजुर्गों और महिलाओं को देख सकते हैं | सभी लोग अपने अपने क्षमता अनुसार अपने साथ महाप्रसाद Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) की सामग्री अपने साथ लेकर चलते हैं | वहीं दूसरी ओर इस Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मेले में Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) बनाने की सारी सामग्री बिक्री हुई आपको नजर आ जाती है | सभी श्रद्धालु खुले जमीन में बैठकर इस लजीज व्यंजन को बनाने की प्रक्रिया का शुभारंभ प्रभु श्री राम का नाम लेकर प्रारंभ करते हैं |
गाय के गोबर से निर्मित कंडे जिसे स्थानीय भाषा में गोईठा भी कहते हैं | उसे एक दूसरे के ऊपर रखकर आग से जलाई जाती है और दूसरी ओर शुद्ध गेहूं के आटे को अच्छी तरह से गुंद कर आटे की लोईआ बनाई जाती है | इसमें सत्तू मसाला अच्छी तरह भरकर जल रहे आग के गोईठा में रख दी जाती है | इसे समयानुसार उलट-पुलट कर अच्छी तरीके से पका दी जाती है | यहां शुद्ध सत्तू काले चने को भूनकर पीसने के फल स्वरुप जो पाउडर बनता है वह सत्तू कहलाता है | सत्तू मसाला के लिए, भोजपुरिया समाज हरी-कच्ची मिर्च,प्याज, लहसुन, अदरक, काला जीरा,अजवाइन, नींबू,.. अचार, धनिया पत्र, नमक, तेल,मात्रा और स्वाद के अनुसार एक साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिस्ते है | यह मिश्रण ही लजीज सत्तू के मसाला का रूप लेता है |
चटकदार चोखे के लिए बैगन, आलू, टमाटर, को सर्वप्रथम उसी गोबर के जलते हुए एक कंडे में पकाया जाता है | और फिर उसे बाहर निकाल कर मात्रा और स्वादानुसार नमक, तेल या गाय की घी ,मिर्चा, प्याज, धनिया पत्र मिलाकर अच्छी तरह पुनः इसे भी मिस्ते हुए मिलाते रहते हैं | और यह चोखा तैयार हो जाता है | इस तरह यह बिहार का प्रिय व्यंजन Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) तैयार हो जाता है और श्रद्धालु परिवार इसे प्रभु का प्रसाद मानकर पूरे आत्मीयता के साथ ग्रहण करना प्रारंभ कर देते हैं |
ऊंची ऊंची कंडे की धुवे से लबालब आसमान को चीरती हुई इस पावन मेले की उपस्थति कई किलोमीटर दूर से ही आपको नजर आने लगती है और यह महाभोज मेला Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मेला,अपनी ओर आप रूपी आपको खीच लाती है । यहां लाखों लाखों लोग एक साथ एक जगह बैठकर इस व्यंजन का महा लाभ उठाते हैं | प्रभु की ऐसी लीला है कि यहां Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) आप किसी भी तरह से बनाए, इतना स्वादिष्ट बन जाता है कि आप अपने क्षमता से ज्यादा खाकर आत्मविभोर हो जाते हैं |
इस महाभोज मेले में अनजान शब्द की कोई स्थान नहीं होता | आप वहां उपस्थित किसी भी परिवार से Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) मांग कर भरपूर खा सकते हैं और इस महा प्रसाद का लाभ उठा सकते हैं | किसी कारणवश अगर कोई परिवार इस मेले का हिस्सा नहीं बन पाता है तो वह अपने अपने घरों में ही इसे विधिवत प्रभु श्री राम का नाम लेकर बनाते हैं और इस महान प्राचीनतम परंपरा का निर्वहन अपने-अपने मुताबिक करते हैं | वैसे तो हर बिहारी Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) का यह व्यंजन अक्सर अपने घरों में बनाते हैं पर इस दिन की अपनी ही विशेषता है |
भोजपुरी भाषा में एक कहावत अमूमन बड़े बुजुर्गों द्वारा आज भी सुनने को हमें मिल जाती है | ‘माई बिसरी, बाबू बिसरी, पंचकोसवा के लिट्टी-चोखा ना बिसरी |’ इसका अर्थ है,की प्रभु की रचाई इस मायामई संसार में जन्म देने वाले माता - पिता,भाई - बहन, रिश्ते - नाते सभी एक दिन छूट जायेंगे पर Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) का यह अनोखा मेला अनवरत निरंतर चलती रहेगी | Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) का यह मेला हमारे समाज में भाईचारा और आपसी मजबूती का संदेश देती है और साथ-साथ अपनी धनी सनातन सभ्यता को भी परिभाषित करती है |
उम्मीद है आपको मेरा यह प्रकरण अवश्य ही पसंद आया होगा और मैं आप सभी से अनुरोध करूंगा कि आप एक बार अवश्य इस पावन धरा पर आए और इस महाप्रसाद Litti Chokha ( लिट्टी चोखा ) का आनंद ले |
धन्यवाद |