जिला दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़ (Dantewada District : Chhattisgarh)
नमस्कार मित्रों। इस प्रकरण में मैं आपको छत्तीसगढ़ के अद्भुत और रहस्यमई जिला दंतेवाड़ा के बारे में संक्षिप्त शब्दों के जरिए आप तक रखने के प्रयास कर रहा हूं। इसमें आप इस जिला दंतेवाड़ा का इतिहास, यहां की वर्षों की पुरानी संस्कृति, जनजातीय लोग, खनिज संपदा और पर्यटन के माध्यम से पुरातत्व व पौराणिक मंदिरों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। शिक्षा के क्षेत्र में हुई शिक्षा क्रांति को भी हम जिला दंतेवाड़ा में जानने का प्रयास करेंगे और साथ-साथ एनएमडीसी,एस्सार जैसी संस्थाओं के द्वारा औद्योगिक क्रांति ने यहां के जनजातियों के जीवन में क्या क्या परिवर्तन लाया है, यह भी इस आर्टिकल जिला दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़ में टटोलने का प्रयास करेंगे।
छत्तीसगढ़ राज्य का एक ऐसा अद्भुत जिला, जहां स्थानीय जनजातियों ने अपनी कई सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही संस्कृति को आज भी बचाए रखा है।
छत्तीगढ़ राज्य के इस जिले के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप इन सभी आर्टिकल को पढ़ सकते है।
- छत्तीस किलों व गढ़ो का प्रदेश,छत्तीसगढ़
- माता दंतेश्वरी मंदिर,दंतेवाड़ा
- बारसूर - मंदिरों और तालाबों की नगरी
- ढोलकल गणेश
- एजुकेशन सिटी, दंतेवाड़ा
माता दंतेश्वरी के पावन नगरी में माता के नाम पर अपने अस्तित्व को समेटा यह छोटा सा शहर 25 मई 1998 में जिले के रूप में बस्तर संभाग के अंतर्गत अपनी पहचान बनाया।
यह अदभुत जिला,प्रशासनिक व्यवस्था के तहत दो भागो में बांट दिया गया। विभाजित होकर क्रमशः यह जिला वर्ष 2007 में बीजापुर तथा वर्ष 2012 में सुकमा जिलों को जन्म दिया।
3410 किलोमीटर वर्ग क्षेत्र में फैला दंतेवाड़ा जिला,बस्तर संभाग के दक्षिण में स्थित होने की वजह से दक्षिण बस्तर जिला का नामकरण भी इसे प्राप्त है।
हरे भरे सदाबहार घने जंगलों से भरा पूरा यह जिला मनमोहक घाटियां, सुंदर नदियां,अछूते अद्भुत जलप्रपातों, पहाड़ों, पौराणिक मंदिरों से सम्पूर्ण यह अविरल स्थान पर्यटन की दृष्टि से और प्रकृति के प्रेमियों के लिए हमेशा से रमणीय स्थान बना हुआ है।
इसकी ऐतिहासिक गौरवशाली पौराणिक महत्व,बारसूर जैसी मंदिरों का प्रांगण कहे जाने वाला स्थान,पुराने मंदिर स्थापत्य, कला-संस्कृति,पाषाण-स्तंभ,आकाश और कैलाश नगर इसे हमेशा से देश के बाकी जिलों के मुकाबले अलग पंक्ति की कतार में खड़ा कर रखा है।
मां प्रकृति की बहुत ही अपरंपार दृष्टि इस जिले को मिली हुई है। खनिज संपदा से लैस यह जिला हमेशा से पूरे विश्व में चर्चा का विषय बना हुआ है।
यहां का बैलाडीला क्षेत्र विश्व के सबसे बड़े लौह अयस्क के भंडारों में से एक है। इस लौह अयस्क में आयरन की मात्रा 68 प्रतिशत है जो इसे विश्व का सबसे बेहतरीन आयरन ओर बनाता है। गलेना,क्वार्ट्ज,ग्रेनाइट,टीन जैसे अमूल्य खनिजों की भरमार भंडार बैलाडीला और यहां की आस पास की पहाड़ियों में स्थित है।इसी तरह यूरेनियम,चूना पत्थर तथा संगमरमर के निक्षेप भी जिले में है।
5 तहसीलों से बना यह विचित्र जिला,स्वयं दंतेवाड़ा,कुआकोंडा, कटेकल्याण, गीदम और बड़े बचेली में कुल 124 ग्राम पंचायत है।इस जिले को भू आवेष्ठित जिला भी कहा गया है क्योंकि इसके सारे भूभाग सुकमा, बीजापुर और बस्तर जिले से घिरा हुआ है।
वर्ष 2005 में यह जिला सलवा जुड़ूम अभियान की वज़ह से पूरे विश्व में चर्चा का विषय बना हुआ था।
इसके बारे में आप इस लिंक के माध्यम से जानकारी ले सकते हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग NH-63 और NH-163A इस जिले को जोड़ती है। स्टेट हाईवे की अगर हम बात करें तो SH-5 यहां से गुजरती है।
यहां की मुख्य नदी इंद्रावती है।इस नदी पर बोध घाट रिवर वैली प्रोजेक्ट स्थापित की गई है। शंखिनी- डंकिनी नदी का समागम तट दंतेवाड़ा जिले के प्रतिष्ठा में चार चांद लगाती रही है।
दंडकारण्य क्षेत्र के अंतर्गत भी इसे पौराणिक काल से लिया जाता रहा है।ऐसी मान्यता है कि प्रभु श्री रामचंद्र जी अपने 14 वर्ष के वनवास काल के दौरान कुछ वर्ष इस क्षेत्र में कर्म भूमि के रूप में गुजारा था।
जनसंख्या की दृष्टि से अगर हम सरकारी सूत्रों सेंसस 2011 की माने तो दंतेवाड़ा जिला निम्न जनसंख्या में छत्तीसगढ़ में चौथा पायदान, दूसरी सबसे कम जनसंख्या वृद्धि दर, तीसरी सबसे कम जनसंख्या घनत्व और तीसरी सबसे कम महिला साक्षरता यहां पर दर्ज है।
यहां अनेक जनजातीय समूह है।प्रमुख जनजाति में माडिया, मुड़िया,धुरुवा, भत्रा जनजाति के लोग यहां गुजर-बसर करते हैं।इसे सर्वाधिक आरक्षित व अवर्गीकृत वन क्षेत्रफल वाला जिला भी कहते हैं।इनके द्वारा उत्सवों और मेले के दौरान गाये जाने वाले क्षेत्रीय गीत और नृत्य ढोल मृदंग इनकी संस्कृति की झांकी को बिल्कुल अलग ही रंग देती है।
समूहों को गौर का सिंग धारण कर दंडामी माड़िया या गौर नृत्य करते देखना हर किसी के आँखों को चमक से भर देता है और इसका सौंदर्य आपकी आत्मा को आत्मविभोर कर देता है।
आइए हम इसके स्वर्णिम इतिहास को जानने का प्रयास करते हैं।
दुर्गम भौगोलिक संरचना के दृष्टि से यह क्षेत्र बाहरी दुनिया के पहुँच से बाहर रहने के बावजूद भी जिलेे के कुछ भागों मे बहुतायत मे उपलब्ध पुरातात्विक अवशेष तथा शिथिल मूर्तियांं, चरित्रकारों को तथा पुरातात्विक विशेषज्ञों से अपनी आयु व्यक्त कर क्षेत्र का गौरवशाली अतीत को खोजने की अपील सदा करता रहा है |
इतिहासकारों के मान्यता के मुताबिक (सिंधु नदी के तट) के एक समूह जब प्राग द्र्विड़ियों से 1500 ईसा पूर्व मे अपने आप को अलग कर समूह के कुछ सदस्य वर्तमान के छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर क्षेत्र पहुँच थे जिनका जिक्र संंस्कृत साहित्य मे द्रविड़ बोलने वाले “नाग” के नाम से पंजीकृत है। छिंदक नाग आधुनिक गोंड प्रजाति के पूर्वज है ऐसी मान्यता है।
72 ईसा पूर्व से 200 ईसवींं तक बस्तर प्रांत शातवाहन राजाओं ने यह अपना प्रभुत्व शासन के रूप में की थी। नल राजवंश के राजकुलों का भी वर्चस्व यहां हुआ करती थी और नल वंश से पहले बौद्ध एवं जैन धर्मों का भी विकास होने के साक्ष्य मिले है।
ईसा पूर्व 600 से 1324 ईसवींं तक नल (350-760 ईसवींं) तथा नाग (760-1324 ईसवींं) मे इस क्षेत्र मे आदिवासी गणतंंत्र कायम था , जो उल्लेखनीय है।
कालांतर मे यह पद्दति धीरे-धीरे क्षीण होता गया और चालुक्य राजवंश (1324-1774 ईसवींं) के समय महान गोंड सभ्यता को नष्ट करते हुए इस व्यवस्था का पतन समयानुसार होता चला गया।
बाहरी राजाओं के पदार्पण से इस क्षेत्र मे आहिस्ता आहिस्ता सामंतवाद विचारधारा को पांव पसारने का मौका दिया जो लगातार अगले 5 शताब्दियों के कार्यकाल के लिए विकास मे जड़ता तथा अवरोध उत्पन्न किया था |
विगत कुछ वर्षों में, दंतेवाड़ा सभी माओवादी क्षेत्रों के मुकाबले एक स्थिर बल्कि तेजी की गति से विकास के केंद्र बिंदु के रूप में उभर रही है।
नक्सल पीड़ित और अन्य बच्चों के लिए निशुल्क व्यवस्था के तहत एक ही कैंपस में नर्सरी से लेकर हाईस्कूल तक की विद्यालय खोला जाना, पोर्टा कैबिन जिसका गुणवत्ता पूरक आवासीय शिक्षा व्यवस्था के चलते शाला त्यागी बच्चों की दर मे काफी गिरावट लाना संभव हुआ है।
इस क्षेत्र मे इसे एक बड़ी गैम चेंजर के रूप में लिया जाता है | सरकारी सूत्रों की माने तो लगभग 7000 छात्रों को प्राथमिक शिक्षा से स्नातकोत्तर तक नि:शुल्क, आवासीय गुणवत्तापूरक शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए निर्मित श्री अटल बिहारी वाजपेयी एजुकेशन सिटी; के पी एम जी द्वारा वर्ष 2012 के लिए शिक्षा के क्षेत्र मे दुनिया का 100 नवाचारों मे पंजित एक अलग ही पहचान दिलाता है।
जिला मे ही सृजित तथा सफलता पूर्वक संचालित आजीविका कॉलेज की अवधारणा को प्रशासन द्वारा पूरी राज्य मे लागू किया गया, जिसके तहत लाइवलीहुड कॉलेज में कारपेंटर, इलेक्ट्रीशियन, ब्यूटी पार्लर, सिलाई- कढाई का प्रशिक्षण कुुुुशल प्रशिक्षकों देखरेख में प्रशिक्षण दिया जा रहा है।यहां प्रशिक्षण पाकर निरक्षर और अल्प शिक्षित युवक- युवतियां स्वरोजगार से आय अर्जित कर पाने में सक्षम हो रहे हैं।
महिलावर्ग को सशक्त करने हेतु शक्ति केंंद्र, विशेष आवश्कता वाले अर्थात दिव्याग बच्चो के लिए अवरोध मुक्त आवासीय शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए निर्मित सक्षम को पूरी दुनिया ने सराहा है |
लक्ष्य तथा छूलों आसमान जैसी सफल योजनाए स्थानीय युवाओं को क्रमश सुनहरा भविष्य पीएससी के तहत प्रशासनिक सेवाओं में, सरकारी संस्थानों में पदस्थ और मेडिकल के क्षेत्र मे सुनहरा स्वप्न देखने का पर्याप्त मौका दिया है|
गवर्नमेंट जीएनएम ट्रेनिंग सेंटर बालिकाओंंं के लिए नर्सिंग क्षेत्र में जाने के लिए मंच दी जा रही है।इसके साथ ही तकनीकी ज्ञान के लिए एनएमडीसी,डीएवी पॉलीटेक्निक और आइटीआइ खोले गए है।
कृषि के क्षेत्र मे जैविक उत्पादकों का चाहे उत्पादन की बात हो या हो फिर खरीदी, मिलिंग तथा विपणन करने वाली किसानों की अपनी समिति भूमिगाद ने लगभग सभी से खूब प्रशंसा बटोरी है |
राज्य का सबसे बड़ी रूरल बी पी ओ(बस्तर युवा बी पी ओ), सिलिकान वैली को भी बस्तर लेकर आने मे कामयाबी प्राप्त की है।
इस सेटअप की वजह से यहां के युवा वर्ग को कारपोरेट कल्चर मे काम करने की सुनहरा मौका के साथ-साथ व्हाइट कॉलर जॉब के रूप में स्थाई रोजगार से जुड़ना का मौका प्रदान किया है।
औद्योगिक क्षेत्र की अगर हम बात करें तो किरंदुल बचेली बैलाडीला और टेकनार का नाम सम्मिलित है। भारत सरकार की अपनी संस्था एनएमडीसी के तीन प्रोजेक्ट:
किरंदुल,बचेली और बैलाडीला में क्रमशः वर्ष1968,1980,1988 जापान कैसे विकासशील देश के सहयोग से लौह उत्खनन प्रोजेक्ट को जमीन पर उतारा गया।
टेकनार में जैविक प्रक्रिया द्वारा गाय के गोबर से मच्छर अगरबत्ती और गोमूत्र से फिनाइल जैसी कीटनाशक औषधियों का बहुत सफल तरीके से निर्माण कार्य किया जाता है।
वहीं अगर हम पर्यटन के क्षेत्र से जुड़ी विषय वस्तु को रखीं जाय तो इस जिले की जितनी तारीफ की जाए कम होगी।
माता दंतेश्वरी मैया की मंदिर
ढोलकाल की दुर्गम पहाड़ी पर स्थित गणेश जी की प्राचीनतम विशालकाय प्रतिमा
बारसूर की शिव जी की प्राचीनतम बतिसी मंदिर, सोलह खंबा मंदिर,भगवान गणेश जी की जुड़वा मूर्ति,मामा भांजा मंदिर,चन्द्रादित्य मंदिर, पेदम्मा मंदिर,नागदेवता मंदिर और इंद्रावती नदी की धाराएं का सात भागों में बटकर सात धार की बेहद ही खूबसूरत जलधारा का निर्माण करना सम्मिलित है।
हरे भरे घने जंगलों और पहाड़ों के बीच स्थित फुलपाड़ जलप्रपात। ऐसे यहां और भी कई सुंदर,मनमोहक जलप्रपात है जो बाहरी दुनिया के नज़रों से आज भी छिपा हुआ है।
कारली का महादेव मंदिर
गमावाड़ा का महापाषाण िया स्मारक
दंडकारण्य की सबसे ऊंची चोटी नंदीराज जिसकी ऊंचाई लगभग 1176 मीटर है। ऊंची पहाड़ियों में एनएमडीसी द्वारा बसाया गया गगनचुंबी आकाश नगर और कैलाश नगर इत्यादि देखते ही बनती है।
इसके अलावा एक समय में एशिया का सबसे ऊंचा रेल लाइन जिसे वॉल्टियर रेलवे लाइन, दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता था, इसकी भी खूबसूरती को एक पर्यटक प्रेमी अपनी आंखों में हमेशा हमेशा के लिए कैद कर सकता है।
यहां मुख्य आजीविका कृषि व वनोपज है। किरंदुल-बचेली एरिया में लौह अयस्क का उत्खनन भारत सरकार की संस्था एनएमडीसी करता है। एस्सार जैसी भारतीय मूल की बहुराष्ट्रीय कंपनी का भी उपक्रम उपलब्ध हैं।
इन दोनों संस्थानों में श्रमिक और लघु वर्ग कर्मचारियों के पद पर स्थानीय लोगों को रोजगार प्रोजेक्ट के मुताबिक अवसर के रूप में समयानुसार मिलता रहा है। अन्य उद्योग नहीं हैं। इससे लोग मानसून के बाद रोजगार के लिए तेलंगाना, तमिलनाडु और अन्य प्रदेशों में अक्सर पलायन करते नजर आते रहते है।
स्वास्थ्य के मद्देनजर स्थानीय प्रशाशन और एनएमडीसी के सीएसआर निधि के अंर्तगत जिला अस्पताल दंतेवाड़ा,अपोलो अस्पताल बचेली और कोरॉन्ना महामारी को ध्यान में रखकर COVID-19 हॉस्पिटल गीदम का निर्माण किया गया है। आयुर्वेद का जिला आयुर्वेद स्वास्थ्य केंद्र दंतेवाड़ा भी उपलब्ध है।
पर्यटकों को और अधिक आकर्षित करने तथा पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकारी रेस्ट हाऊस के अलावा अब जिला दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़ में एक, दो रहने लायक सर्वासंपन्न युक्त कम बजट के छोटे छोटे होटल और लॉज भी उपलब्ध हो गई है जो पहले नहीं हुआ करती थीं। इस दृष्टि से दर्शन यात्रीगण को जगदलपुर पर ही ठहरने के लिए व्यवस्था करना पड़ता था।
दोस्तों अपनी सारी खूबियों से भरा पूरा यह जिला दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़ (Dantewada District : Chhattisgarh) निश्चित तौर पर आप सभी को अवश्य ही पसंद आएगा। आप वर्ष के किसी भी महीने में इस अद्भुत अकल्पनीय और रहस्यमई जिले का असली आनंद लेने के लिए परिवार सहित अवश्य आएं।
पहुंचने के आयाम:
बाय एयर
रायपुर और विशाखापट्टनम इसके करीबी प्रमुख हवाई अड्डे हैं, ये दोनों जगह जिले मुख्यालय दंतेवाड़ा से सड़क मार्ग दुरी करीब 400 किलोमीटर हैं। जगदलपुर निकटतम मिनी हवाई अड्डा है जिसमें रायपुर और विशाखापट्टनम के साथ सीधे जुड़ाव है।
ट्रेन द्वारा
विशाखापट्टनम, छत्तीसगढ़ राज्य के जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से ट्रेन के द्वारा भी जुड़ा हुआ है। विशाखापट्टनम और दंतेवाड़ा के बीच दो दैनिक ट्रेनें की सीधे कनेक्टिविटी हैं।
सड़क के द्वारा
रायपुर और दंतेवाड़ा के बीच नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं, दंतेवाड़ा नियमित बस सेवाओं के माध्यम से हैदराबाद और विशाखापट्टनम से भी जुड़ा हुआ है।
धन्यवाद्।
सौ. जिला दंतेवाड़ा प्रशासन www.dantewada.nic.in से कुछ तथ्य ।