छत्तीस किलों व गढ़ो वाला राज्य,छत्तीसगढ़(Incredible Chhattisgarh)

इस आर्टिकल "छत्तीस किलों व गढ़ो वाला राज्य" में हम छत्तीसगढ़ राज्य की स्वर्णिम पृष्ठ भूमि, छत्तीसगढ़ राज्य के नामकरण, छत्तीसगढ़ राज्य के संभाग,छत्तीसगढ़ राज्य के जिले, छत्तीसगढ़ राज्य की जातियां एवं जन जातियां,छत्तीसगढ़ राज्य के लोगों की जीवनशैली, छत्तीसगढ़ राज्य की संस्कार, संस्कृति और सभ्यता तथा छत्तीसगढ़ राज्य के पर्यटन स्थल के बारे में जानकारी संक्षिप्त तरीक़े से साझा करने की कोशिश करेंगे।

छत्तीस किलों व गढ़ो वाला राज्य,छत्तीसगढ़(Incredible Chhattisgarh)
वन उपज का लाभ लेते आदिवासी गण - छत्तीसगढ़ (Incredible Chhattisgarh)

बंधु गण नमस्कार।

    "दो गज की दूरी 
    मास्क है जरूरी"
            और
"जब तक दवाई नहीं 
तब तक कोई ढिलाई नहीं"

जागरूकता और हमारी जीवन के  सुरक्षा कवच के तहत्,यह बहुमूल्य जीवन वर्धक संदेश, *वैश्विक महामारी कोरोना* से संघर्ष,रोकथाम तथा बचाव की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा चलाई गई जनहित अभियान को आप सभी अपने और अपनों के लिए एक अनुशासन के तहत इसका पालन अवश्य कर रहे होंगे, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।

मित्रो,अपनी यात्रा को आगे बढ़ाते हुए, यह आर्टिकल और भविष्य में *हमारा गांव, हमारा देश, हमारा संदेश* के तहत जितनी भी आर्टिकल होगी वे ऐसे राज्यों से संबंधित पिछड़े गांव होंगे जो पिछले कुछ दशकों से इनके कुछ विशेष भूभाग मेरी निजी राय से कहीं ना कहीं एक दृढ़ राजनैतिक और सामाजिक इच्छा शक्ति के अभाव में आज भी *नक्सलवाद(साम्यवाद) या फिर यूं कहले माओवादी विचारधारा* से जूझ रहा हैं।

यहां मानवता और इंसानियत के तहत इन सब से ऊपर उठकर हम अपने भारत के हृदय में बसने वाले ग्रामीण भारत को पूरे आत्मीयता के भाव से गले लगाना चाहते है।यहां पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत सारी संभावनाएं उपस्थित है जिसे सही पैमाने में समयानुसार निखारा जा सकता है।

इस क्षेत्र की अधिकांश भाग,आज भी पैतृक कृषि व्यवस्था मानसून आधारित है जो कुछ महीनों तक ही सीमित रहती है।इनकी अधिकांश व्यवसाय और लेन देन इसी पर आधारित रहती है।इसके आलावा प्राकृतिक खनिज संपदा और वनोपज इनकी जीने का मुख्य श्रोत भी रहा है। इन राज्यो में क्रमशः


*बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तेलंगना, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, केरल और छत्तीसगढ़* का नाम सुमार है।

छत्तीसगढ़ राज्य के कुछ विशेष जिलों में दंतेवाड़ा जिले के बारे में कुछ संक्षिप्त विवरण:

इन राज्यो के क्रम में, मै सर्वप्रथम आप सभी माननीय गणों का ध्यान एक ऐसे राज्य की ओर केंद्रित करना चाह रहा हूं जिसकी पौराणिक इतिहास अत्यन्त गौरवशाली और स्वर्णिम रही है,जों विभिन्न संस्कृतियों के विकास बिंदु बना रहा है,जिसकी पृष्ठभूमि कई हजार वर्षों के हमारे अमूल्य तथ्यों का साक्ष्य रह चुका है

प्राकृतिक सौन्दर्य और खनिज संपदाओं से परिपूर्ण हरे भरे वनों जंगलों से लैस,गगनचुंबी पहाड़ियां,कल-कल करती नदियां, मनमोहक जल-नृत्य करती जलधाराएं,अकल्पनीय प्राचीन स्मारक,गुफाएं,पौराणिक मंदिरे,पाषाण चित्रकारी,दुर्लभ जाती की वन्य प्राणियों,कई अभ्यारण्य,टाइगर रिजर्व,राष्ट्रीय उद्यानों से भरी पड़ी है यह अद्भुत राज्य।

वहीं दूसरी ओर इन जंगलों में समाहित हमारे भोले-भाले प्रवृति के आदिवासी और जन-जातियां  आज भी है जो अपनी कुछ विशेष धर्म जैसे वैष्णव,शैव,शाकत,बौद्ध,जैन के अलावा अन्य संस्कृतियों का भी आकर्षण को समेटे अविरल,दुर्लभ,अद्वितीय कलाकृतियों    तथा साहित्यों,आत्मीयता भरी संस्कृति तथा कई हजार वर्षों के रीति-रिवाज और परंपराओं को सहेजें बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बिल्कुल अपने आप को अलग किए अपनी ही दुनिया में मस्त जीवन बसर करते आज भी नजर आ जाते है।

वैदिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी आज भी कई ऐसे साक्ष्य इस राज्य में मौजूद है जिसे *त्रेता और द्वापर युग* की ओर स्पस्ट इशारा करती है।


जी हां, आप बिल्कुल सही समझ पा रहे हैं मै *मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी और नीलांबर श्री कृष्ण जी* की बात कर रहा हूं जिसकी बखान महाकाव्य रामायण में *दंडकारण्य और महाभारत में कोसाला साम्राज्य* के रूप में वर्णित है।

*बाल्मिकी रामायण* में इसके पावन जंगलों तथा महानदी जैसी जीवनदायिनी नदियों का भी दैव्य प्रमाण मिलता है।ऋषि-मुनियों और यशस्वी तपस्वियों के वाश का भी इन वनों में साक्ष्य के रूप में मिलता रहा है।

*छत्तीस गढ़ो/ किलो* से बना यह अद्वितीय राज्य *छत्तीसगढ़* है जो वर्तमान में नवंबर १, वर्ष २००० में *मध्य प्रदेश* राज्य से *८४वाँ संविधान संशोधन: अनुच्छेद 03* के तहत् अलग होकर अलग राज्य के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी। 

पौराणिक तथ्यों,कहानियों और इतिहासकारों की माने तो इस *राज्य के नामकरण* में बहुत सारी तथ्य है,जिसमें से कुछ मै जानकारी के तहत आप सभी तक साझा कर रहा हूं;

आज से लगभग ३०० वर्ष पहले *गौंड शासकों* के यहां *३६ किले* हुआ करते थे और इसी संख्या बल के आधार पर इस राज्य का नाम छत्तीस किलो वाला राज्य, छत्तीसगढ़ पड़ा था।

इस नाम को लेकर यह भी मान्यता है कि *प्रदेश के १८-१८  गढ़ शिवनाथ नदी के उत्तर और दक्षिण में स्थित थे* जिनमें *कलचुरी राजाओं* का कब्जा था इन्हीं के वजह से यह नाम पड़ा था।

पौराणिक काल में इसे *कौशल राज्य* का भी दर्जा प्राप्त था जहां प्रभु श्री रामचंद्र जी का ननिहाल था यह भोपाल के *प्रोफ़ेसर श्री हीरालाल शुक्ल* की किताब *रामायण काल* से १७वी शताब्दी तक इस इलाके को कौशल्या दक्षिण कौशल के तौर पर जाना जाता था।

वरिष्ठ पत्रकार *वसंत तिवारी जी* की किताब में *इतिहासकार कनिंघम* की बातों का जिक्र मिलता है। इसके मुताबिक *कलचुरी वंश के छेदी राजा* यहां के मूल निवासी थे।इनके क्षेत्रों को चेदिशगढ़ कहा जाता था और चेदिशगढ़ से छत्तीसगढ़ में रूपांतरित हुआ।

उपलब्ध स्रोतों से हमें चीनी यात्री ह्वेनसांग से लेकर,महाकवि कालिदास जी के जन्म का जिक्र, सातवाहन शासक,काकतीय वंश/चालुक्य वंश के साथ साथ,

वकाटक वंश,
गुप्तवंश,
राजर्षितुल्य कुल 
शरभपुरीयवंश,
पाण्डुवंश,
सोमवंशी,
नलवंशः तथा
क्षेत्रिय राजवंश में बस्तर के नल और नाग वंश,छिंदक नागवंश (बस्तर),
कवर्धा के फणि नागवंश तक के शासन काल की जानकारी मिलती है।

छत्तीसगढ़ राज्य को *महतारी(मां)* का सम्मान भी प्राप्त है और इस राज्य में धान की अधिक पैदावार इस स्वर्णिम प्रदेश को *धान का कटोरा* शीर्षक से भी नवाजा गया है।

*बिजली* की भरपूर श्रोत, *उत्तम गुणवत्ता की स्टील* और अन्य कई खनिज संपदाओं से धनधान्य यह विशेष राज्य अन्य राज्यो कि तुलना में हमेशा अपने आप को आगे की कतार में खड़े रखती अाई है।

पर्यटन की दृष्टि से भी यह प्रदेश प्रतिष्ठित राज्यो में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुकी है जिसमें से कुछ महत्वपूर्ण नीचे दर्ज है:

राजिम 
(आरंग = मंदिर का शहर) महामाया मंदिर रतनपुर ( बिलासपुर )
माता दंतेश्वरी,दंतेवाड़ा
ढोलकल्ल
आकाश नगर
खूंटाघाट बांध (बिलासपुर)
मरही माई मंदिर (भनवारटंक )
नवागढ़
सेतगंगा
चित्रकोट जलप्रपात
तीरथगढ़ जलप्रपात
इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान
गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान
कैलाश गुफा
कुटुंब सार गुफा
गंगरेल बांध
सिरपुर
मल्हार
भोरमदेव मंदिर
मैनपाट
बमलेश्वरी मंदिर
अमरकंटक
सर्वमंगला मंदिर (कोरबा)
जल विहार बुका
केंदई जल प्रपात
गोल्डन आईलैंड

वर्तमान में छत्तीसगढ़ कुल ५ संभागों को लेकर गठित है जिसमें
*बस्तर*
*सरगुजा*
*रायपुर*
*बिलासपुर* और 
*दुर्ग* आती है।


इन सभी में *बस्तर सबसे बड़ी संभाग है* और *दुर्ग* सबसे छोटी। इसमें *कुल २८ जिले* है।

छत्तीसगढ़ के जिले,

*कवर्धा* 
*कांकेर(उत्तर बस्तर)*  
*कोरबा* 
*कोरिया*
*जशपुर* 
*जांजगीर-चाम्पा*
*दन्तेवाड़ा(दक्षिण बस्तर)*  *दुर्ग*
*धमतरी*
*बिलासपुर*
*बस्तर*
*महासमुन्द* 
*राजनांदगांव* 
*रायगढ*
*रायपुर* 
*सरगुजा* 
*नारायणपुर* 
*बीजापुर*
*बेमेतरा*
*बालोद*
*बलौदा बाज़ार*
*बलरामपुर*
*गरियाबंद*
*सूरजपुर*
*कोंडागांव* 
*मुंगेली* 
*सुकमा*  *गौरेला-पेंड्रा-मारवाही* 

इन जिलों कई *जातियां और जनजातियां* हैं। जनगणना २०११ के हवाले से छत्तीसगढ़ राज्य की कुल जनसंख्या में से ३०.६२ प्रतिशत (७८.२२ लाख) जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है।

*अघरीया, गोंड, कंवर ,बिंझवार ,उरांव, हल्बा, भतरा, सवरा* आदि प्रमुख जनजातियॉ है, वहीं दूसरी ओर *अबूझमाड़िया, कमार, बैगा, पहाड़ी कोरवा तथा बिरहोर* राज्य के विशेष पिछड़ी जनजातियाँ हैं।इनके अतिरिक्त अन्य जनजाति समूह भी है, जिनकी जनसंख्या अपेक्षाकृत बहुत कम है।

अपनी *पारप्परिक लोकगीत और लोकनृत्य* में इनका विभिन्न खास अवसरों पर गीत एवं नृत्य का बहुत महत्व रहा है। यहां के लोकगीतों में अनेकों विविधता है।गीत आकार में प्रायः छोटे और गेय होते है एवं गीतों का प्राण-तत्व है -- भाव प्रवणता।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख और *लोकप्रिय गीतों* में से कुछ गीत इस प्रकार से हैं: भोजली, पंडवानी, जस गीत, भरथरी लोकगाथा, बाँस गीत, गऊरा गऊरी गीत, सुआ गीत, देवार गीत, करमा, ददरिया, डण्डा, फाग, चनौनी, राउत गीत और पंथी गीत।

इनमें से सुआ, करमा, डण्डा व पंथी गीत नाच के साथ बड़े हर्षोल्लास के साथ गाये जाते हैं।

रोटी,भात,चटनी,भाजी,आमत,बाफैरी,भजिया,चौसेला,फर्रा,खुर्मी,मूंगबरा,थेथरई और मुठिया आमुमन्न भोजन में लेते है।

यहां मुख्यता छत्तीसगढ़ी, हिंदी, तेलुगू, सरगुजा, गोंडी, हलवी, साद्री,भत्री,कुरुख,ओड़िया,बंगाली भाषा के रूप में प्रयोग करते है।

यहां एक बात बिल्कुल सटीक बैठती है - *गागर में सागर भरने* वाली बात। इस प्रदेश के बारे में बहुत सारी विषय वस्तूए है जिसे एक ब्लॉग में समेटना नहीं के बराबर है पर मैंने अपने संक्षिप्त शब्दों के द्वारा,छत्तीसगढ़ प्रदेश के मूल विषयों को आप तक रखने का एक क्षणिक प्रयास मात्र की है।उम्मीद है,आपको इस धनी राज्य के बारे में जानने में अवश्य ही सहयोग मिलेगी।

हम अपने अगले आलेख में *बस्तर संभाग* से प्रारंभ करेंगे जिसके कुल ७ जिले इस प्रकार है:

बस्तर संभाग के जिले

*बस्तर*
*नारायणपुर*
*कांकेर*
*कोंडागांव*
*दंतेवाड़ा*
*सुकमा* और
*बीजापुर*

हम इन प्रत्येक जिले के अंतर्गत  जितने भी गांव जमीनी स्तर पर उपस्थित हैं हम उन गांव तक प्रत्यक्ष रूप से जाकर उनके जीवन शैली को करीब से जानने की प्रयास करेंगे।वहीं दूसरी ओर इन जिलों में भारत सरकार द्वारा निहित जो केंद्र और प्रादेशिक स्तर पर इन गिरीवासियों के हित के लिए,संविधान के तहत जो विगत कई वर्षों से तरह तरह के नीतियां,कानूनन मूलभूत सर्व सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है, 

क्या ये वनवासी भाई बहन उसका उपयोग कर पा रहे हैं??

क्या उनके अंदर इतनी जागरूकता आ गई है कि वे इसका सम्पूर्ण लाभ ले पायेंगे??

या वे आज भी इन सभी से अछूते हैं।यह हम जानने का प्रयास करेंगे।

धन्यवाद्

जानकारी के श्रोत :

wikipedia.com,raipur.gov.in

(मित्रो,मेरी अगली आर्टिकल छत्तीसगढ़ के अद्भुत,अद्वितीय और अकल्पनीय *बस्तर* भूभाग के एक ऐसे जिला से होगी जिसकी पावन धरा में शक्तिरूपेण *श्री श्री १००८ माता दंतेश्वरी जी* का वाश है और यह ५२ शक्तिपीठों में से एक है।)