ढोलकल गणेश,दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ | Dholkal Ganesh Temple : Dantewada, Chhattisgarh | Dholkal Ganesh Mandir in Dantewada - Chhattisgarh

सैकड़ों वर्षों पुरानी, एक दंत गणेश जी की दुर्लभ प्रतिमा ढोलकल गणेश,जो छत्तीसगढ़ राज्य के दंतेवाड़ा जिले के दुर्गम पहाड़ियों पर लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है|प्रभु परशुराम और गणेश जी की युद्ध स्थली,ढोलकल उसे हम इस ढोलकल गणेश,दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ आर्टिकल में करीब से जानने का प्रयास करते है|

ढोलकल गणेश,दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ | Dholkal Ganesh Temple : Dantewada, Chhattisgarh | Dholkal Ganesh Mandir in Dantewada - Chhattisgarh
ढोलकल गणेश,दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़

मित्रों नमस्कार|

आज मैं फिर आपको इस आर्टिकल ढोलकल गणेश,दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ के माध्यम से विश्व की एक और विचित्र दुर्लभ और अद्भुत गणेश जी व गणपति बप्पा की ऐसी प्रतिमा से रूबरू करवाने की कोशिश करूंगा जिसकी गौरवशाली इतिहास मान्यता अनुसार सैकड़ों वर्षो पुरानी है|

छत्तीसगढ़ राज्य का रहस्यमई जिला दंतेवाड़ा का एक और अविरल धरोहर जो पर्यटन की दृष्टि से अपने आप को विश्व के बाकी देशों से एक पायदान और ऊपर करता है|

भगवान गणेश जी की एक दंत वाली ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित ढाई से तीन फीट ऊंची और लगभग ढाई फीट चौड़ी वास्तुकला की दृष्टि से अद्वितीय प्रतिमा जो दंतेवाड़ा की दुर्गम पहाड़ियों में स्थित है|यह पहाड़ी ढोलक के आकार में होने की वजह से ही इस पहाड़ी का नाम ढोलकल गणेश रखी गई है|

छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से लगभग 370 किलोमीटर,जगदलपुर से 100 किलो मीटर तथा दंतेवाड़ा मुख्य सिटी से लगभग 20 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है|यह अनोखा स्थान ढोलकल गणेश,जो पूरी दुनिया की नजरों से कई वर्षों तक छुपा रहा|

आज हम परत दर परत इसे आप सभी तक उभारने की कोशिश करते हैं और इसके पीछे के रहस्य भरी इतिहास को सूत्रों से मिली जानकारियों के तहत आप सभी गणमान्य नागरिकों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करेगें|

Courtesy : Dk 808 - YouTube 

भारतवर्ष के रहस्यमई राज्य छत्तीसगढ़ के बारे में और भी अधिक जानकारी आप नीचे दिए लिंक के माध्यम से  प्राप्त कर सकते हैं|

पुरातत्व विभाग की अगर माने तो छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग का अकेला ढोलकल गणेश,एक अद्वितीय और विचित्र प्रतिमा है जो दंतेवाड़ा जिले के घने जंगलों के बीच ढोलकाल की दुर्गम संकीर्ण पहाड़ियों पर स्थित है|जिसकी दुर्गम ऊंचाई लगभग 3000 फीट है|

आज भी प्रकृति के साथ शोभायमान होती इस मनोरम प्रतिमा को ध्यानपूर्वक देखने के पश्चात मानो ऐसा लगता है की गणेश जी की यह अद्भुत प्रतिमा कई पौराणिक कथाओं को समेट कर आज भी बहुत कुछ उस विशेष सदी की तथ्यों को हमसे साझा करने की  प्रयास करती हो|

मान्यता है,11वीं शताब्दी में चिंदक नागवंशी शासकों द्वारा अपने क्षेत्र की अखंडता और संप्रभुता को ध्यान में रखते हुए रक्षा व प्रहरी की दृष्टि से इस ऊंची पहाड़ियों पर वे अपने आराध्य देव भगवान गणपति जी की मूर्ति का निर्माण करवाया था|

इसी दुर्गम पहाड़ी पर गणेश जी के साथ साथ माता और सूर्य देव का भी मंदिर हुआ करता था,पर काल के अंतराल में कई उलटफेर के साथ वर्तमान में सिर्फ गणेश जी की यह  प्रतिमा बची हुई है|सूर्य देव के मंदिर के बिखरे हुए अवशेष इस पहाड़ियों में आज भी आप देख सकते हैं|कहते हैं सूर्यदेव की प्रथम रोशनी इसी मंदिर पर पढ़कर इस पूरे क्षेत्र को प्रकाशमान किया करता था|इसकी ऊंचाई गणेश जी की प्रतिमा के ऊंचाई से थोड़ी ज्यादा है|

पौराणिक कथा और यहां के स्थानीय ग्रामीण वासियों की अगर मानें तो विघ्नहर्ता गणेश जी की एकदंत वाली यह प्रतिमा प्रभु परशुराम और भगवान गणेश जी के मध्य हुए युद्ध को जोड़कर भी देखा जाता रहा है|

आइए, हम भगवान परशुराम और गणेश जी के बीच हुए इस घोर युद्ध के बारे में हमारे शास्त्रों में लिखें कथाओं के माध्यम से जानने का प्रयास करते हैं|

ब्रह्मवैवर्तपुराण यह पुष्टि करता है कि एक बार भगवान परशुराम अपने इष्ट देव भगवान भोले शंकर के दर्शन की इच्छा लिए कैलाश की ओर रवाना हुए|उस वक़्त भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी माता पार्वती को राम-कथा सुना रहे थे|

कथा में बाधा उत्पन्न न हो इसके लिए भगवान शिव ने अपना दिव्य त्रिशूल अपने पुत्र गणेश को सौंपते हुए द्वार पर पहरेदार के रूप में खड़े कर यह निर्देश और आज्ञा दी कि इन दौरान किसी को भी किसी भी सूरत में अंदर ना आने देना|गणेश जी ने अपने पिता की आदेशानुसार दरवाजे पर त्रिशूल धारण कर आज्ञा का पालन करना प्रारंभ कर दिया|

इसी प्रकरण में अपने प्रभु की दर्शन की तीव्र इच्छाशक्ति के साथ भगवान परशुराम कैलाश स्थल पहुंचे और सीधे भगवान भोल शंकर के दर्शनार्थ कैलाश द्वार में प्रवेश किए|द्वार पर नंदी और शिवगणों से उनकी भेंट हुई|

परशुराम जी ने उनसे शिव जी के बारे में पूछा कि इस समय प्रभु कहां हैं?नंदी ने विनम्रतपूर्वक कहा कि उन्हें वर्तमान में इसकी कोई जानकारी नहीं है कि शिव जी कहां हैं|

यह सुनकर परशुराम जी ने नंदी तथा शिवगणों पर क्रोध भरे शब्दों के साथ यह कहा कि तुम सब कैसे भक्त हो जो अपने ईष्ट देव के बारे में कोई जानकारी ही नहीं रख पाते हो,तुम सभी शिवगण कहलाने के लायक ही नहीं हो|

परशुराम जी ने अपने इन क्रुद्ध वाक्यों के साथ ही स्वयं भगवान शिव जी को ढूंढने का प्रयास करने लगे|बहुत ढूंढने के बाद अंत में उन्हें एक स्थान दिखाई दिया,जहां एक घर के द्वार पर एक नन्हा अबोध बालक पहरा दे रहा था|परशुराम जी उस बालक के पास पहुंचे और वहीं से द्वार में प्रवेश करने की कोशिश करने लगे|इस पर पार्वती नंदन ने उन्हें वहीं रोक दिया|

परशुराम ने बालक गणेश जी की इस व्यवहार को देखते हुए कहा, तुम कौन हो जो मुझे इस तरह यहां रोकने का प्रयास कर रहे हो? इस पर गणेश जी ने अपने कर्तव्य के तहत कहा की आप कौन हैं जो इस तरह बिना अनुमति के प्रवेश किए जा रहे हैं|

कैलाश में इस उथल पुथल को देखते हुए सारे शिवगण वहां उस स्थान में एकत्र हुए|परशुराम और बालक गणेश जी को याचना की दृष्टि से एक दूसरे का संक्षिप्त परिचय देते हुए स्थिति को संभालने का अथक प्रयास किया पर बात नहीं बनी|

दोनों पक्षों में वादविवाद बढ़ने लगा|नंदी बैल ने परशुराम जी को बताया ये गजमुख माता पार्वती के पुत्र गणेश जी है|साथ ही नंदी ने गणेश जी से कहा कि ये परशुधारी आपके पिताश्री प्रभु शिव के परम भक्त परशुराम हैं|

इस पर परशुराम जी ने संबोधन करते हुए कहा कि ये विचित्र सा दिखने वाला बालक,जिसका मुंह एक गज की तरह है और शरीर का बाकी हिस्सा इंसान स्वरुप,यह कैसे मां पार्वती का पुत्र हो सकता है|

यह सब सुनने के पश्चात् गणेश जी ने परशुराम जी का ब्यंग कसते हुए कहा कि आपकी पोशाक तो एक ब्राह्मण स्वरुप  हैं, लेकिन आपके हाथों में कमंडल के स्थान में ये परशु क्या कर रहे है? इस पर दोनों पक्षों में लगातार शब्दों के प्रहार होते रहें|

इन्हीं के बीच परशुराम ने शंकर जी से भेंट करने के लिए उनके निवास स्थान पर जबरन जाने लगे|इस अवस्था में गणेश जी ने अपने पिता द्वारा प्राप्त त्रिशूल को परशुराम के समक्ष कर उन्हें युद्ध के लिए सचेत किया|परशुराम जी ने भी क्रोध रूप अपनी परशु तान कर अबोध बालक गणेश जी की चुनौती स्वीकार कर युद्ध के लिए आगे बढ़ गए और दोनों के बीच भयंकर युद्ध प्रारंभ हुआ|

इस युद्ध में परशुराम जी द्वारा फारसे से प्रहार हेतु गणेश जी के एक दंत कट गया और उनकी फरसा दूर जा गिरा||इस प्रकरण में ही पार्वती नंदन श्री गणेश जी का एक और नाम एकदंत जुड़ गया|एक दंत टूट जाने के कारण इनका नाम एकदंत भी पड़ा और कहते है कि परशुराम जी का फरसा जहां गिरा था,वह स्थान फरसपाल कहलाया|

गणपति बप्पा की लगभग लगभग 1000 वर्ष पुरानी इस प्रतिमा के ऊपरी के दांये और बांये हाथ में क्रमशः फरसा और टूटी हुई एक दंत और नीचे के दांये हाथ में अभय शैली में माला धारण किए हुए नजर आते है|वहीं दूसरी ओर नीचे प्रतिमा के बांये हाथ में मोदक धारण किए सुशोभित हैं|

इसी प्रकरण कि याद में छिंदक राजाओं ने अपने राज्य के इस क्षेत्र के पहाड़ी शिखर पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापति की| 

क्षेत्र में यह पौराणिक कथा आज भी मशहूर है कि श्रीगणेश और परशुराम जी का युद्ध इसी शिखर पर हुआ था|दक्षिण बस्तर भाग के भोगामी आदिवासी समाज अपनी उत्पत्ति ढोलकट्टा (ढोलकल) की महिला पुजारी को अपना स्वरुप मानते हैं|

यहां के क्षेत्रीय परिवार सालो भर अपने आराध्य देव श्री गणेश जी की पूजा अर्चना अपने पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही रीति रिवाज के मुताबिक आज भी करते नजर आ जाते है|माघ महीने यानी अंग्रजी के जनवरी और फरवरी के बीच प्रभु को ध्यान में रखते हुए हर वर्ष यहां मेले का आयोजन भी जोरों शोरों से किया जाता है|

आप यहां वर्ष के किसी भी महीने में आकर इस दुर्लभ,अद्वितीय एक दंत श्री गणेश जी के प्रतिमा का दर्शनलाभ ले सकते है|यह स्थान घने जंगलों और दुर्लभ पहाड़ियों से भरापूरा है तो आप अपनी सुरक्षा की दृष्टि से अकेले बिल्कुल ना जाए|उचित होगा कि आप स्थानीय लोगों की मदद एक गाइड के तौर पर अवश्य ही लें|

ट्रैकिंग करने की दृष्टि से भी यह स्थान प्रसिद्धि की ओर तेजी से बढ़ रही है| 

जैसा कि पहले मैंने बताया था कि यह स्थान कुछ ही वर्ष पहले दुनिया की नजरों में आया था|इसलिए हमें इसे और निखारने और इसकी जागरूकता को बढ़ाने हेतु एक दूसरे का सहयोग अति आवश्यक है|

अगर आप ट्रेकिंग के उद्देश्य से यहां आते हैं तो इस स्थान की मौजूदा स्थिति को संज्ञान में लेते हुए आपको लगभग पूरे दिन में लगभग लगभग 8 से 12 घंटे की संपूर्ण तैयारी अवश्य ही करनी होगी ताकि आप इस मनोरम स्थान का आनंद भरपूर तरीके से ले पाए|

दंतेवाड़ा जिले से फरसपाल गांव पहुंच कर आप ट्रेकिंग का एक अच्छा अनुभव प्राप्त कर सकते है|

इस गांव से लगभग लगभग पैदल 5 किलो मीटर चढ़ाई करते हुए खूबसूरत हरे भरे घने जंगलों और पहाड़ियों को लुफ्त उठाते हुए बड़े सावधानी और सतर्कता के साथ आप अपने मनोरम लक्ष्य तक पहुंच सकते है और ठीक इसी प्रकार 5 किलो मीटर वापिस एक स्टैंडर्ड परिमाप के आंकलन के मुताबिक नीचे अपने गंतव्य तक पहुंच सकते है|

आशा है आपको यह आर्टिकल अवश्य पसंद आएगा|मैं इसी तरह बाकी राज्यों के भी छिपे हुए अपने अमूल्य धरोहर को इसी तरह आर्टिकल के माध्यम से आप तक रखने का प्रयास करता रहूंगा|आप अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में भी डाल सकते हैं ताकि अपने आर्टिकल में मैं आपके सुझावों को ध्यान में रखते हुए कुछ और भी जानकारी मुहैया करवा पाऊं|

धन्यवाद्|